શનિવાર, 12 મે, 2012

स्वप्न संकेत पार्ट 2(1)

दिल ने कहा "ग़ज़ल मेँ ईस घटना से जुड़ा शेर लिखूँ।" उसी दिन रात को सोते वक्त जब तक नींद आई तब तक मन को (प्रेरणा नं झरणुं किताब में दी गई सूचनाओँ के अनुसार) हुक्म देता रहा 'मुझे जो शेर लिखना है उस के बारे में कुछ संकेत दो। कोई एसा संकेत दो कि शानदार शेर अर्थपूर्ण शेर लिखूँ।" दोस्तों मन ने संकेत दिया और क्या खूब संकेत दिया।

मुझे रात को स्वप्न आया। स्वप्न में टीवी पर जो देखे थे वही द्रश्य दिखाई दिये। वही तोड़फोड़, आगजनी, परप्रांतियोँ की पिटाई करते राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता पर............ कार्यकर्ताओँ के चेहरे? कार्यकर्ताओँ के शरीर तो ईन्सानों के थे पर चेहरे ईन्सानों के नहीं थे। मन ने अलग चेहरों के द्वारा संकेत दिया था। चेहरे बंदरों के थे। सुबह उठते ही मैंने शेर लिखा,

भीड़वादी राज करवाता है कितनी तोड़फोड़।
सच कहे इतिहास सचमुच हम थे बंदर एक दिन।

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